सहेली करऽ ना ठिठोली

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सहेली करऽ ना ठिठोली,
कुहुकिनी मुँधेरे न बोली।

हवा कटखनी देह ठारा
बुझाली अनेरे झिंगोली।

किरिच में छिंटाइल तरैया
समेटल सकेरे मँझोली।

जिया जब अकेले उदासे,
कहाँ, के उकेरे रँगोली?

अचेते न जाने किरिन कब
मले मुख सबेरे की रोली।

सुरुज दूब कोरे टँगाइल,
जहन में अन्हेरे समो ली।

जहाँ ले नजर जा सकेली,
फुलाइल कनेरे किलोली।

अजीबे जहानी के ढर्रा,
अन्हेरे-उजेरे मिचोली ।

[कुहुकिनी- कोयल। मुँधेरे- मुँहअंधेरे। कटखनी-काट खाएवाली, तीखी। झिंगोली- झूल, लबादा। किरिच- काँच के टुकडा। मँझोली- बीचवाली, उषा से तात्पर्य। कनेर- कनइल।]

दिनेश पाण्डेय,
पटना।