बसंत के प्रभाव
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गोल चनरमा माघ के, घन से गगन बिहून ।
तनी तनी सिहरन लगे, तनी तनी उनखून ।।
ढोलक झाल मृदंग से, स्वागत नित रितुराज ।
मन के फुरसत बा कहाँ, उधम मचावल काज ।।
गइल बतीसी गर्त में , आँख कान नादान ।
मन के गेह तुचा भइल , मदिर गंध बिसरान ।।
बोली में रस घोर के, गवले गीत बसंत ।
मन उड़ गइल अकास में, छरकत चले उदंत ।।
~ कन्हैया प्रसाद रसिक ~