मन काहे अलसाइल बा।
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फागुन के बयार बहके
पीयर सरसों दहदह दहके
मोंजर आम के लागल महके
बाग में भौंरा गुनगुनाइल बा ।
कुहू -कुहू देखीं कोयल बोले
बोली सुन के ई मनवाँ डोले
मधुरे रस कानन में घोले
केकर सुध में मन अझुराइल बा ।
मौसम भी शराबी भइल
रंग फाग के गुलाबी भइल
नैना उनकर जवाबी भइल
आज मन फगुनाइल बा ।
काहे मन अलसाइल बा ।।
अनीता मिश्रा “सिद्धि”,
हजारीबाग, झारखण्ड।