जब जब याद आई, भाई के दुलार तहरा

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जब जब याद आई, भाई के दुलार तहरा
जब तब काटे धाइ अँगना दुआर तहरा
मइया कोरा में खेलवाली,जहिया झोरा में झुलवली
अँगना एके एक दुअरिया,घर के एके एक डगरिया

सपना बाबूजी के एक,हमारे बबुआ होइहे नेक
सपना केतने फुलइले एके डार तहरा
जब तब काटे धाइ अँगना दुआर तहरा
अलगा होके तू का पइब,तनिका निमन चिकन खइब

हमरा सुखल-साखल जूरी, करबि दूसरा के मजदूरी
तहरा जूठन फेकल जाइ ,हंमरा आगी ना बराई
सोचब एके अँगना,दु-दु गो बेवहार तहरा
जब तब काटे धाइ अँगना दुआर तहरा

जहिया दियरी बाती आई,तहरा पाँती दिया धराई
हमरा घर मे रही अन्हार,अँखिया डूबी आँसू धार
फगुआ हँसि-हँसि खूब मनइब,पुआ संगी साथ उड़इब
देखब कई रंग जे एके गो तिउहार तहरा

जब तब काटे धाइ अँगना दुआर तहरा
इहे किस्मत के ह बात,बाड़ पइसा ढेर कमात
जिनगी माटी में हमार,चमकत बाटे देह तोहार
हमरे चलते तू बनि गइल, बनि जे हमरे से तनि गइल

हँसि-हँसि ताना मारे गउआ जवार तहरा
जब तब काटे धाइ अँगना दुआर तहरा
करबि तहरे हम सेवकाई, लेइबि जिनगी सजी गवाई
मइया बाबूजी के सेवल,नइया एक साथ जे खेवल

पालल बगिया के मति काट,अँगना दूअरा के मति बाँट
एक दिन आई फेरु बगिया में बहार तहरा
जब तब काटे धाइ अँगना दुआर तहरा
धनवा लेब बहुत कमाई,नाही मिली सहोदर भाई

तोहार मोटरी हम पहुँचाइबि,जे जे कहब टहल बजाइबि
बाकी हमके मति बेलगाव,अंखियन से मति दूर भगाव
उहे करबि जइसे भरल रहिसँसार तहरा
जब तब काटे धाइ अँगना दुआर तहरा

  • राधामोहन चौबे “अंजन”

 

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