मानव मन

0
654

मानव मन

मानव मन भी
कतना अद्भुत होला नु
एकरा से बढ़के कुछ नइखे
एक ओर ई प्रशंसनीय बा
त दोसरा ओर व्यभिचारी भी
एक ओर देशभक्त बा
त दोसरा ओर देशद्रोही भी
एक तरफ ई हत्यारा बा
त दोसरा ओर शहीद भी
एक ओर ई धार्मिक बा
त दोसरा ओर नास्तिक भी
एकर भाग भी अजीबे लिखाइल बा नु
नीमन बाउर के ज्ञान होते हुए भी
ई चल पड़ेला बुराई के ओर
चल पड़ेला केहू के खुशी छिने
एकर संघतिया भी त
मानवे मन होला नु
एकरा से बन्हिया त
अब जानवर के मन बा
बोलेला त ना लेकिन बुझेला
ई जानवर श्रेणी के लायक भी नइखे
ई आपन श्रेणी अलगे बना लेलक
एकरा के अब अलग अलग
नाम से जानल जाला
व्यभिचारी, चुहार, आतंकवादी
गिरल, घटिया आ आउर भी प्रसिद्ध नाम
ई हम नइखीं बतावत सभे के पता बा
मानव देह भी
कतना अद्भुत होला नु

सुजीत सिंह (शिक्षक)