राम राज्य के सपना बेकार बा,
जहाँ नारी बेबस आ लाचार बा।
कबो त मानव बन सोचित केहू,
दानवो से गइल लो के बिचार बा।
जेकरा जहाँ भेंटल नोच बकोट,
दोसरा लगे भेज देत उपहार बा।
अनेरे मूर्ति बना पूजेलऽ मंडप में,
जब मंत्र के जगह लेत चित्कार बा।
चिड़ई चुरूंगो, मुंह घुमावे लागल,
जा कुकर्मी लानत बा धिक्कार बा ।
- दिलीप पैनाली
सैखोवाघाट