ओहि दिन फुलेसर का बाजारे जाए के मन एकदमे ना रहे। बाकी, मलिकाइन अरिया गइली कि आजु Ajit sing की दूकान के चाउमिन, Kanhaya Prasad Tiwari Rasik जी की दूकान के बर्गर, पैनाली दिलीप जी की दूकान के समोसा आ Sanjay Kumar Ojha जी की दूकान के पकौड़ी खाए के बहुते मन करता। रउरा जाहीं के परी। ना त बुझि लीं कि हँ…।
ई “हँ” के कहल सुनिके फुलेसर के देह काँपि गइल आ चलि दिहलें बाजारे।
जे बाजारवाली सड़क पर चहुँपलें कि एक आदमी पूछि दिहल कि ए फुलेसर भाई ई का भइल हो? घरे सब कुशल बा नू? के गइल हो?
फुलेसर कहलें-‘ए मरदवा ई काहें कहतारऽ? सब कुशल बा। केहू नइखे गइल।’
‘त ई मूड़ी आ मोंछ काहें छिलाइल ह?’- ऊ पूछि दिहलें।
‘आरे, एकर बड़ा जबरजत्त कहानी बा।’ फुलेसर बतला दिहलें आ ऊ मान लेहलें।
लेकिन ई पूछल आ बतावल अन्तिम ना रहे। जेने जासु ओने लोग इहे बात पूछे। ई कइसे भइल? के गइल? फुलेसर से जब इहे बात Suresh Kumar जी पूछि दिहनीं त ऊ आव देखले ना ताव। एगो ईंटा उठाके ठाँइ दे अपना कपार पर मार दिहलें। कपार फूटि गइल। खून के धार बहि चलल। सुरेश कुमार जी का ठकुआ मारि दिहलसि। दउरिके दुनू हाथे कपार दबनीं आ कहनीं कि ई का आ काहें कइल ह? चलऽ, चलऽ, पहिले डाक्टर किहाँ।
फुलेसर कहलें कि ना बताइबि आ ना डागदर किहाँ जाइबि। पहिले पूरा बाजार का लोग के इहाँ जउरिआईं, तबे कवनो बात होई।
कपार फाटल रहे, खून के पवनार बहत रहे आ कुरूता से धोती ले सब लाल हो गइल रहे, ई देखहीं खातिर ढेर लोग एकाठा हो गइल रहे। फुलेसर के कहल बात पेटरउल लेखाँ बाजारी में फइलल आ सभे एकाठा हो गइल। फुलेसर पूछलें कि केहू बाकी त नइखे? सभे एके साथे कहल-‘ना’। अब चलS, पहिले पट्टी बन्हवावऽ, तबे बतइहS कि काहें मूड़ी आ मोंछ छिलाइल बा?’
फुलेसर कहलें-‘ ना, पहिले सुनिए ल लोगें। आजु हजामत बनवावे गइनीं हँ त हजाम एतना ना रद्दी हजामत बना दिहलसि ह कि हमरा कहे के परल ह कि तनी अउर छोट क दऽ। ऊ ससुरा कहीं छोट आ कहीं बड़ बार काटि दिहलसि ह। बुझात रहल ह कि चिल्होर नोंच के भागल बिया। आजिज आ के हमरा कहे के परल ह कि एकदम छिल दे। सफाचट। ऊ छूड़ा उठवलसि ह आ मूड़ी का बार का साथे, दार्ही आ मोंछ सब खतमे क दिहलसि ह। एही से हम त लाजे बाजारहीं ना आवत रहनीं हँ, लेकिन मेहरारू का अजीत सिंह के चाउमिन, रसिक जी के बरगर, दिलीप जी के समोसा आ संजय जी के पकौड़ी खाए के मन क दिहलसि ह। हम त उनुका से तनिको ना डेराइले, बाकी का करीं, मलिकाइन हई? एही में जेने जातानीं ओने लोग पूछता कि के गइल? बतावत- बतावत आजिज आ गइनीं हँ त सबका के एके बेर बतावे खातिर कपार फोरि लिहनीं हँ। अब सभे जानिले हमरा मूड़ी आ मोंछ छिलइला के हाल। अब केहू पूछल त सही में जान दे देबि। चलीं, सुरेश भइया पट्टी बन्हवाईं।’
- संगीत सुभाष