गोंसारी क भूजा भुजावल
मन से ना बिसरे कबहूँ।
कचका चाउर रहतो फाँकीं,
छिटतो जाईं ना डर तबहूँ।
बेर-बेर बरिजे माई कि
जूठ न करिहे खबरदार।
ओकर कहल ना मानीं हम,
मन पड़े हमके अबहूँ।
एने-ओने नाचत जाईं,
खेलत-कूदत बहु देर भइल।
कइसो गोंसारी हम पहुंचीं,
देखनीं उहवाँ के कइल-धइल।
कहनीं भूजा हमरो भुजी दS ,
ना तS माई मरिहें अजहूँ।
गोंसारी क भूजा भुजावल ,
ना मन से बिसरे कबहूँ।
बेकल भइनीं जब हम बहुते
लगने सब हमके डाँटे।
तो से पहिले से बहुते लोग
इहवाँ अबहिन बइठल बाटे।
ओगरत-ओगरत देर भइल,
ए से नीमन खेली कतहूँ।
गोंसारी क भूजा भुजावल ,
ना मन से बिसरे कबहूँ।
कुछुए फरके लइका सन
गुच्ची खेलत रहने सन।
भूजा भुजावल भला भुलाइल,
खेलत गुच्ची हरसाइल मन।
गोंसारी क बात भुलाइल
चल पड़नीं घरवा हमहूँ।
गोंसारी क भूजा भुजावल ,
ना मन से बिसरे कबहूँ।
छूँछे घरवा पहुँची हम त
हमरा से पुछली माई हो।
भूजा कहवाँ छोड़ि के अइले
कथि क बन्हाई लाई हो।
भूजा के नउआ सुनते
सिहरन समा गइल मनहूँ।
गोंसारी क भूजा भुजावल ,
ना मन से बिसरे कबहूँ।
गोंसारी ठंढा होइ गइली,
मंगरु काका मिलले हो।
पुछनीं भुजवा हमरो कहवाँ,
डलिया दउरी का भइलें हो।
कहले जोधा पहुँचावे गइलें
घर जा पता लगा अबहूँ।
गोंसारी क भूजा भुजावल,
ना मन से बिसरे कबहूँ।
कइसो जान में जान समाइल,
अइसन बचपन बीतल हो।
ओइसन दिनवाँँ अब ना अइहें,
छहवाँ केतना शीतल हो।
‘मणि’ का कहें भुलक्कड़ खुदहीं ,
उनकर चरचा घर-घर अजहूँ।
गोंसारी क भूजा भुजावल,
ना मन से बिसरे कबहूँ।
✍️रघुबंशमणि दूबे,
टीकर,देवरिया,
उत्तरप्रदेश।